खेचरी क्रिया की गणना योगभक्तिपरक विज्ञान के चमत्कारिक विषयों में की जाती रही है | यह एक सिद्धिजन्य, अनुभवगम्य एवं अनुभूतिपरक अविनाशी गुह्यतम कड़ी है | प्राचीन काल से ही योगी इसकी सार्वभौम गोपनीयता की प्रतिज्ञा एवं प्रण लेते-देते रहे हैं | सत्यपथगामी साधक इस गुह्य प्राच्यविज्ञान की अन्तर्निहित जटिलताओं के फलस्वरूप प्रायः दिग्भ्रमित हो जाते हैं |
प्राच्यकाल में यह अपूर्व क्रिया व्योमगम्योपनिषद में अन्तर्निहित थी जो कालप्रवाह में विलुप्तावस्था में नियोजित हो गई | देशांतर एवं कालांतर में इसे खेचर्युपनिषद एवं त्रिशंकूपनिषद भी कहते थे । कालान्तर में अनेक ऋषि-मुनियों ने अपनी योग-तपस्चर्या की स्थिति के अनुसार इसके बहुआयामी खण्डों...